Saturday, October 25, 2008

ओलिवर ट्विस्ट , तुम मिले थे मुझे !

दो एक साल पहले चाल्स डिकेन्स की एक किताब में परिचय हुआ था इस पात्र से.मिलकर ये नहीं लगा की किसी उपन्यास का एक चरित्र है ये . बार बार ये लगा की कहीं देखा है इसे , कहीं मिला हूँ इससे ---


लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर
पटरियों के बीच
जीवन जैसी बजबजाती सड़ती बस्साती नालियों में,
खाली पड़े दोनों,खोखले पैकेटों में
अपने अस्तित्व का एकमात्र अर्थ खोजते
ओलिवर ट्विस्ट ,मिले थे तुम मुझे !

शरद की भभकती ठण्ड में
प्लेटफार्म नंबर तीन के चबूतरे पर
बिछाए सारी जमीन
आदमी के वजूद जैसे चीथड़े ओढे
दौड़ती ,हाफती ,ख़तम होती सासों से
ठंढ को फूंक-फूंक कर उडाते ,
विद्रूपताओं के इस विशाल समंदर में
जीवन की नौका सम्हाले,हेमिंग्वे के उस बूढे आदमी
की विजय को पुन: साकार करते ,
ओलिवर ट्विस्ट ,मिले थे तुम मुझे !

काशी में भोले बाबा के उस भव्य प्रान्गण में
कोनचटे की किसी चाय की दुकान पर
संपूर्ण व्यवस्था में
सत्ता-अर्थ-शक्ति लोलुपता के मंथन से उदभूत
पाशविकता विष पान करते ,
मृत संवेदनाओं पर चीत्कार करते ,
ओलिवर ट्विस्ट ,मिले थे तुम मुझे !

खौलते दूध के भगौने से
निकलती भाप जैसी अपनी जिन्दगी लिए ,
व्यवस्था -नियंताओं पर
प्रश्नचिह्न जैसी आखें लिए
विजन ट्वेंटी के स्वप्न को मुह चिढाता
अनंत क्षोभ लिए,
ओलिवर ट्विस्ट ,मिले थे तुम मुझे !

1 comment:

  1. "OLIVER TWIST" ko kai jagahon par maine bhi dekha hai......par kabhi vyakt nahi kar payee un drishyon ko.....kuch shabdon mein........par apka prayaas sachmuch bahut achha laga.......

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