Wednesday, April 22, 2009

गौरैया के बच्चे

दोपहरी सन्नाटे में अकेले अपने रूम मे बैठा कुछ कर ही रहा था की लाइट चली गयी ! एक गहरी सांस ले धीरे से सब काम किनारे रख सम्मुख की खिड़की खोली मैंने । बाहर बेल का पेड़ आज की इस दुपहर में भी वैसे ही बालकनी में आधा झुका हुआ अपनी नयी आयी पत्तियों से बातें कर रहा था । उन्हें बता रहा था कि कैसे कड़ी पीली धूप को मीठे मद्धम-से हरे प्रकाश में बदल खुद से अनवरत बहाना है ।
मन में कुछ यूं ही बेमतलब की करने को सूझी तो बालकनी में किनारे के सब छेद मूंद खूब अच्छे से पानी भर दिया । सोचा धूल भी नहीं आयेगी ठण्ड भी रहेगी ।
लेकिन थोड़ी ही देर में इससे कुछ और भी हुआ । अप्रैल की इस दुपहरी में जब यहां बनारस में पारा ४४ के पार पहुंच रहा है, लू चलने लगी है और तपन शुरू हो गयी है, सामने के बिल्व वृक्ष पर उछलते-फुदकते चिड़ियों के कई झुण्ड जुट आये !
गौरयों के झुण्ड ,जिनमें कई बच्चे थे ! छोटे –छोटे बच्चे !! प्यारे प्यारे बच्चे !! लाल लाल मुंह वाले बच्चे !! अपने चिड़ियापन की समग्र निश्छलता को सहज ही अपनी ट्विक- ट्विक टिमकन-सी बोली में अभिव्यक्त करते भोले भाले बच्चे !! पूरे विश्वास व बड़ी तत्परता से इधर उधर निहारते चंचल बच्चे !! फुदक फुदक कर पानी पीते , प्यास बुझाते टुइंयां से बच्चे !! गौरैया के बच्चे !!!
कभी वे खुले दरवाजे से बिलकुल मेरी मेज के पास आ जाते ! कभी सामने की खिड़की की राड पकड़ तिरछे लटकते ! फिर पानी पीते ! जड़वत बैठा मैं सम्मुख हो रहे इस तृप्ति उत्सव को मग्न देखता रहा ! प्रसाद स्वरूप उतफुल्लता वातावरण में अगरबत्ती के धुयें सी बिखरती रही ! गौरैया के लाल मुंह वाले छोटे बच्चे पानी पीते रहे और मेरी प्यास बुझती रही !

6 comments:

  1. वाकई, इससे एक तृप्ति का भाव मिलता है-एक गहन आत्म संतुष्टि!!

    सब चिड़िया आपको साधुवाद देती होंगी.

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  2. sach padhke hi man trishna mit gayi,sunder post.

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  3. बहुत बढिया .. अच्‍छी पोस्‍ट ।

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  4. सत्कर्म किया आपने, साधुवाद! एक गुजारिश - मुझे लग रहा है कि आपकी मुस्कुराहट बहुत ही सुंदर है, इसीलिये आप उसे हमसे छिपाये हुये हैं। कृपया अपनी सुंदर मुस्कान के साथ नया फोटो खिंचाकर चिट्ठे पर डालें! आभार!

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