चलती हवा में
झूमते पेड़ की खुशी का गीत
मुझॆ पढ़ने नहीं आता !
तुम्हारे शब्द भी कहां पढ़ पाता हूं ! ! !
बसन्ती बयार में
मचलती चिड़िया की चहकन
मुझे लिखने नहीं आती !
तुम्हारी हंसी भी कहां लिख पाता हूं ! ! !
पहली फुहार में
तर बतर भीजतें पलाश की बूंद बूंद खुशी
मुझे समझ नहीं आती !
तुम्हारी निःशब्द मुस्कुराहटे
ठिठुरती रात के बाद
जवान हुयी ताजा धूप का अल्हड़पन
मुझे पीने नहीं आता !
तुम्हें आंख भर देख कुछ बोल कहां पाता हूं ! ! !