Sunday, July 30, 2017

आजकल


हर तरफ धूल है
धुँआ है
गुबार है।

गर्द इतिहास की
चुभ रही है
पलकों में।

वर्तमान का पानी
धुले
स्पष्ट कर दे
सब गर्द
हालाकिं
वह खुद ही
धुंधला है
गंदला है।

ज्ञान गुप्त रोग सा
बढ़े है
दिनों दिन ,
अपने ही निस्तारण
में प्रयासरत,
अपंग, निष्प्रभ !

आजकल ,

Saturday, July 1, 2017

फोन

चलो . . . ! ! !
थोड़ी देर . . .
साथ रहें !
एक दूसरे को फोन करें
 और...
 हैलो भी ना बोलें ।

बहुत देर तक
चुप रहें . . .
और बिना  कुछ कहे
हल्की सी सांस छोड़
फोन रख दें ।

इतनी दूर होकर भी
चलो . . .! ! !
थोड़ी देर
साथ रहें !